श्रद्धांजलि सभा ( हास्य-व्यंग्य कविता ) डॉ लोक सेतिया
टेड़ा है बहुतस्वर्ग और नर्क का सवाल
सुलझाएं जितना इसे
उजझता जाता है जाल ।
आपको दिखलाता हूं
मैं आंखों देखा हाल
देखोगे इक दिन आप भी
मैंने जो देखा कमाल ।
बहुत भीड़ थी स्वर्ग में
बड़ा बुरा वहां का हाल
छीना झपटी मारा मारी
और बेढंगी थी चाल ।
नर्क को जाकर देखा
कुछ और ही थी उसकी बात
दिन सुहाना था वहां
और शांत लग रही रात ।
पूछा था भगवान से
स्वर्ग और नर्क हैं क्या
और उसने मुझे
ये सब कुछ दिया था दिखा ।
घबराने लगा जब मैं
थाम कर तब मेरा हाथ
बतलाई थी भगवान ने
तब मुझे सारी बात ।
श्रधांजली सभा होती है
सब के मरने के बाद
सब मिल कर जहां
करते हैं मुझसे फ़रियाद
स्वर्ग लोक में दे दूं
सबको मैं कुछ स्थान
बेबस हो गया हूं मैं
अपने भगतों की बात मान ।
शोक सभाओं में
ऐसा भी कहते हैं लोग
स्वर्ग लोक को जाएगा
आये हैं जो इतने लोग ।
देखकर शोकसभाओं की भीड़
घबरा जाता हूँ मैं
मुझको भी होने लगा है
लोकतंत्र सा कोई रोग ।
कहां जाना चाहते हो
सब से पूछते हैं हम
नर्क नहीं मांगता कोई
जगह स्वर्ग में है कम ।
नर्क वालों के पास
है बहुत ही स्थान
वहां रहने वालों की
है अलग ही शान
रहते हैं वहां
सब अफसर डॉक्टर वकील
बात बात पर देते हैं
वे कोई नई दलील ।
करवा ली हैं बंद मुझसे
नर्क की सब सजाएं
देकर रोज़ मानवाधिकारों की दुआएं ।
बना ली है नर्क वालों ने
अपनी दुनिया रंगीन
मांगने पर स्वर्ग वालों को
मिलती नहीं ज़मीन ।
नर्क ने बनवा ली हैं
ऊंची ऊंची दीवारें
स्वर्ग में लगी हुई हैं
बस कांटेदार तारें
नर्क में ही रहते हैं
सब के सब बिल्डर
स्वर्ग में बन नहीं सकता कोई भी घर ।
स्वर्ग नर्क से दूर भी
बैठे थे कुछ नादान
फुटपाथ पे पड़ा हुआ था
जिनका सामान
उन्हें नहीं मिल सका था
दोनों जगह प्रवेश
जो रहते थे पृथ्वी पर
बन कर खुद भगवान ।
किया था भगवान ने
मुझसे वही सवाल
स्वर्ग नर्क या है बस
मुक्ति का ही ख्याल ।
कहा मैंने तब सुन लो
ए दुनिया के तात
दोहराता हूँ मैं आज
एक कवि की बात ।
मुक्ति दे देना तुम
गरीब को भूख से
दिला सको तो दिला दो
मानव को घृणा से मुक्ति
और नारी को
दे देना मुक्ति अत्याचार से
मुझे जन्म देते रहना
बार बार इनके निमित ।
मित्रो
मेरे लिये स्वर्ग की
प्रार्थना मत करना
न ही कभी मेरी
मुक्ति की तुम दुआ करना
मेरी इस बात को
तब भूल मत जाना
मेरी श्रधांजली सभा में
जब भी आना ।
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