जाने कब मिलोगी तुम ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
दूर बहुत दूरआती है मुझे नज़र
हंसती मुस्कुराती हुई ।
छू लूं उसे प्यार से
सोचता हूं मैं
किसी दिन ले ले मुझे
अपनी बाहों में वो ।
कब से मैं उसकी तरफ
बढ़ाता रहा हूं कदम
मगर लगता है जैसे
बढ़ता ही जा रहा है
फासला
हम दोनों के बीच ।
एक तरफा
चाहत है शायद
उसने चाहा नहीं मुझे कभी भी
मैंने उसे देखा है
प्यार से मिलते सभी से
रूठी हुई है क्यों मुझ से ही ।
लगाया नहीं
मुझे कभी गले
तड़प रहा हूं उसके लिए मैं
क्यों भाग रही है मुझसे
दूर और दूर ज़िंदगी ।
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