सितंबर 10, 2012

POST : 123 जाने कब मिलोगी तुम ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

      जाने कब मिलोगी तुम ( कविता ) डॉ लोक सेतिया 

दूर बहुत दूर
आती है मुझे नज़र
हंसती मुस्कुराती हुई ।

छू लूं उसे प्यार से
सोचता हूं मैं 
किसी दिन ले ले मुझे
अपनी बाहों में वो ।

कब से मैं उसकी तरफ
बढ़ाता रहा हूं कदम
मगर लगता है जैसे
बढ़ता ही जा रहा है
फासला
हम दोनों के बीच ।

एक तरफा
चाहत है शायद
उसने चाहा नहीं मुझे कभी भी
मैंने उसे देखा है
प्यार से मिलते सभी से
रूठी हुई है क्यों मुझ से ही ।

लगाया नहीं
मुझे कभी गले
तड़प रहा हूं उसके लिए मैं
क्यों भाग रही है मुझसे
दूर और दूर ज़िंदगी । 

कोई टिप्पणी नहीं: