सितंबर 15, 2012

POST : 135 बस यही इक करार बाकी है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

बस यही इक करार बाकी है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

बस यही इक करार बाकी है
मौत का इंतज़ार बाकी है ।

खेलने को सभी खिलाड़ी हैं
पर अभी जीत हार बाकी है ।

दिल किसी का अभी धड़कता है
आपका इख्तियार बाकी है ।

मय पिलाई कभी थी नज़रों से
आज तक भी खुमार बाकी है ।

दोस्तों में वफ़ा कहां बाकी
बस दिखाने को प्यार बाकी है ।

साथ देते नहीं कभी अपने
इक यही एतबार बाकी है ।

हारना मत कभी ज़माने से
अब तलक आर पार बाकी है ।

लोग सब आ गये जनाज़े पर
बस पुराना वो यार बाकी है ।

चैन आया कहां अभी "तनहा"
कुछ दिले-बेकरार बाकी है । 
 

 

कोई टिप्पणी नहीं: