सितंबर 15, 2012

बस यही इक करार बाकी है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

बस यही इक करार बाकी है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

बस यही इक करार बाकी है
मौत का इंतज़ार बाकी है।

खेलने को सभी खिलाड़ी हैं
पर अभी जीत हार बाकी है।

दिल किसी का अभी धड़कता है
आपका इख्तियार बाकी है।

मय पिलाई कभी थी नज़रों से
आज तक भी खुमार बाकी है।

दोस्तों में वफ़ा कहां बाकी
बस दिखाने को प्यार बाकी है।

साथ देते नहीं कभी अपने
इक यही एतबार बाकी है।

हारना मत कभी ज़माने से
अब तलक आर पार बाकी है।

लोग सब आ गये जनाज़े पर
बस पुराना वो यार बाकी है।

चैन आया कहां अभी "तनहा"
कुछ दिले-बेकरार बाकी है।

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