थकान ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
जीवन भर चलता रहाकठिन पत्थरीली राहों पर
मुझे रोक नहीं सके
बदलते हुए मौसम भी ।
पर मिट नहीं सका
फासला
जन्म और मृत्यु के बीच का ।
चलते चलते थक गया जब कभी
और खोने लगा धैर्य
मेरी नज़रें ढूंढती रहीं
किसी को जो चलता
कुछ कदम तक साथ साथ मेरे ।
और प्यार भरे बोलों से
भुला देता सारी थकान
जाने कहां अंत होगा
धरती - आकाश से लंबे
इस सफर का
और कब मिलेगा मुझे आराम ।
1 टिप्पणी:
...Pr mit n ska janm mrityu ka fasla👍
एक टिप्पणी भेजें