सितंबर 06, 2012

थकान ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

          थकान ( कविता ) डॉ  लोक सेतिया 

जीवन भर चलता रहा
कठिन पत्थरीली राहों पर
मुझे रोक नहीं सके
बदलते हुए मौसम भी।

पर मिट नहीं सका
फासला
जन्म और मृत्यु के बीच का।

चलते चलते थक गया जब कभी
और खोने लगा धैर्य
मेरी नज़रें ढूंढती रहीं
किसी को जो चलता
कुछ कदम तक साथ साथ मेरे।

और प्यार भरे बोलों से
भुला देता सारी थकान
जाने कहां अंत होगा
धरती - आकाश से लंबे
इस सफर का
और कब मिलेगा मुझे आराम।

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

...Pr mit n ska janm mrityu ka fasla👍