हर हक़ीक़त हुई इक फ़साना है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
हर हक़ीकत हुई इक फसाना हैबस रहा चार दिन हर ज़माना है ।
प्यार करने का दस्तूर इतना है
डूब जाये जिसे पार जाना है ।
हो रहे ज़ुल्म कितने ज़मीं पर हैं
आसमां के खुदा को बताना है ।
याद रखना उसे जो किया हमसे
एक दिन आ के वादा निभाना है ।
जा रहे हम नये इक सफ़र पर हैं
फिर जहां से नहीं लौट पाना है ।
भेजना ख़त नहीं अब मुझे कोई
ठौर अपना न कोई ठिकाना है ।
प्यार में हर किसी को यही लगता
उनसे नाता बहुत ही पुराना है ।
कुछ बताओ हमें क्या करें यारो
आज रूठे खुदा को मनाना है ।
बांटता ही नहीं दर्द को "तनहा"
पास उसके यही बस खज़ाना है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें