सितंबर 28, 2012

POST : 152 आज के हालात पर तीन नज़्में - डॉ लोक सेतिया ' तनहा '

 आज के हालात पर तीन नज़्में - डॉ लोक सेतिया ' तनहा '

 1  

जो भूला लोकतंत्र आचार ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया 

जो भूला लोकतंत्र आचार 
हुई सत्ता की जय जयकार ।

चुना था जिनको हमने , वही
बिके हैं आज सरे-बाज़ार ।

लुटा कर सब कुछ भी अपना
बचा ली है उसने सरकार ।

टांक तो रक्खे हैं लेबल
मूल्य सारे ही गए हैं हार ।

देखिए उनकी कटु-मुस्कान
नहीं लगते अच्छे आसार ।

2  

कहने को तो बयान लगते हैं ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

कहने को तो बयान लगते हैं
खाली लेकिन म्यान लगते हैं ।

वोट जिनको समझ रहे हैं आप
आदमी बेजुबान लगते हैं ।

हैं वो लाशें निगाह बानों की
आपको पायदान लगते हैं ।

ख़ुदकुशी करके जो शहीद हुए
देश के वो किसान लगते हैं ।

लोग आजिज़ हैं इस कदर लेकिन
बेखबर साहिबान लगते हैं ।

3  

बेदिली से दुआ की है ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया


बेदिली से दुआ की है
तुमने भारी खता की है ।

मारकर यूं ज़मीर अपना
खुद से तुमने जफ़ा की है ।

बढ़ गया है मरज़ कुछ और
ये भी कैसी दवा की है ।

तुम सज़ा दो गुनाहों की
हमने ये इल्तिज़ा की है ।

बिक गये चन्द सिक्कों में
बात शर्मो-हया की है ।  
 
( कविता संग्रह " एहसासों के फूल " में शामिल हैं ) 
 
 



 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

बढ़िया नज़्म सभी...किसान लगते हैं👌👍