आज के हालात पर तीन नज़्में - डॉ लोक सेतिया ' तनहा '
1
जो भूला लोकतंत्र आचार ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
जो भूला लोकतंत्र आचारहुई सत्ता की जय जयकार ।
चुना था जिनको हमने , वही
बिके हैं आज सरे-बाज़ार ।
लुटा कर सब कुछ भी अपना
बचा ली है उसने सरकार ।
टांक तो रक्खे हैं लेबल
मूल्य सारे ही गए हैं हार ।
देखिए उनकी कटु-मुस्कान
नहीं लगते अच्छे आसार ।
2
कहने को तो बयान लगते हैं ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
कहने को तो बयान लगते हैंखाली लेकिन म्यान लगते हैं ।
वोट जिनको समझ रहे हैं आप
आदमी बेजुबान लगते हैं ।
हैं वो लाशें निगाह बानों की
आपको पायदान लगते हैं ।
ख़ुदकुशी करके जो शहीद हुए
देश के वो किसान लगते हैं ।
लोग आजिज़ हैं इस कदर लेकिन
बेखबर साहिबान लगते हैं ।
3
बेदिली से दुआ की है ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
बेदिली से दुआ की है
तुमने भारी खता की है ।
मारकर यूं ज़मीर अपना
खुद से तुमने जफ़ा की है ।
बढ़ गया है मरज़ कुछ और
ये भी कैसी दवा की है ।
तुम सज़ा दो गुनाहों की
हमने ये इल्तिज़ा की है ।
बिक गये चन्द सिक्कों में
बात शर्मो-हया की है ।
( कविता संग्रह " एहसासों के फूल " में शामिल हैं )
1 टिप्पणी:
बढ़िया नज़्म सभी...किसान लगते हैं👌👍
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