सितंबर 16, 2012

POST : 137 लिख कर ख़त ये तमाम रखे हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

  लिख कर ख़त ये तमाम रखे हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"   

लिख कर ख़त ये तमाम रखे हैं 
पढ़ ले जो उसके नाम रखे हैं । 
 
आंचल में इनको भर लेना 
जो अनमोल इनाम रखे हैं ।
 
हम अब पीना छोड़ चुके हैं
उनकी खातिर जाम रखे हैं । 

जिनको खरीद सका न ज़माना
अब खुद ही बेदाम रखे हैं ।

पत्थर चलने की खातिर भी
शीशे वाले मुकाम रखे हैं ।

खुद ही अपनी रुसवाई के
हमने चरचे आम रखे हैं ।

जिन पर बातें दिल की लिखीं हैं
ख़त वो सभी बेनाम रखे हैं ।
 
जुर्म नहीं बस की जो मुहब्बत
सर पे कई  इल्ज़ाम रखे हैं ।
 
उनपे नहीं अब "तनहा" परदा 
राज़ वो सब खुले-आम रखे हैं ।
 

 

कोई टिप्पणी नहीं: