जिधर देखो सभी लगते अकेले ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
जिधर देखो सभी लगते अकेलेन जाने क्या हुए दुनिया के मेले ।
नहीं चलती हमारी चाल कोई
कभी हमने कई थे खेल खेले ।
तुम्हारा प्यार मांगा था तुम्हीं से
सितम कितने ज़माने भर के झेले ।
कभी पाए बिना मांगे थे मोती
मिले हैं आज बस मिट्टी के ढेले ।
तुम्हें दिल आज कोई दे गया है
अमानत आज दिल अपना भी दे ले ।
ज़माना बेचता है ख्वाब कितने
हकीकत कुछ नहीं सब ख्वाब से ले ।
बहुत डर लग रहा है आज "तनहा"
ज़रा हाथों में मेरा हाथ ले ले ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें