सितंबर 10, 2012

जिधर देखो सभी लगते अकेले ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

जिधर देखो सभी लगते अकेले ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

जिधर देखो सभी लगते अकेले
न जाने क्या हुए दुनिया के मेले।

नहीं चलती हमारी चाल कोई
कभी हमने कई थे खेल खेले।

तुम्हारा प्यार मांगा था तुम्हीं से
सितम कितने ज़माने भर के झेले।

कभी पाए बिना मांगे थे मोती
मिले हैं आज बस मिट्टी के ढेले।

तुम्हें दिल आज कोई दे गया है
अमानत आज दिल अपना भी दे ले।

ज़माना बेचता है ख्वाब कितने
हकीकत कुछ नहीं सब ख्वाब से ले।

बहुत डर लग रहा है आज "तनहा"
ज़रा हाथों में मेरा हाथ ले ले।

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