राजा नंगा है ( व्यंग्य कविता ) डॉ लोक सेतिया
भ्रष्टाचार की बहती गंगा हैलेकिन प्रधान मंत्री चंगा है।
सत्यमेव जयते का इक नारा
देखो दीवार पे टंगा है।
सब मंत्री निर्वस्त्र हुए
खुद राजा तक भी नंगा है।
पैसे ने किया बस अंधा है
देशभक्ति उनका धंधा है।
लोहा बेचा, खाया कोयला
कैसा फ़हराया झंडा है।
बिकते नेता सरकार बिकी
काम आता उनका चंदा है।
फस गई सरकार बेचारी है
चेहरे पर कालिख कारी है।
सीखा नहीं लेकिन घबराना
जब चोरों से ही यारी है।
अब दाग़ सभी लगते अच्छे
बेची सब शर्म हमारी है।
सच को हम नहीं छिपाते हैं
हम अपना धर्म निभाते हैं।
घोटालों की ख़बरों को बस
कुछ छोटा कर दिखलाते हैं।
मुखप्रष्ट की खबर को हम
कहीं भीतर छपवाते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें