सितंबर 10, 2012

POST : 122 राजा नंगा है ( व्यंग्य कविता ) डॉ लोक सेतिया

राजा नंगा है ( व्यंग्य कविता ) डॉ  लोक सेतिया

भ्रष्टाचार की बहती गंगा है
लेकिन प्रधान मंत्री चंगा है ।

सत्यमेव जयते का इक नारा
देखो दीवार पे टंगा है ।

सब मंत्री निर्वस्त्र हुए 
खुद राजा तक भी नंगा है ।

पैसे ने किया बस अंधा है
देशभक्ति उनका धंधा है ।

लोहा बेचा, खाया कोयला
कैसा फ़हराया झंडा है ।

बिकते नेता  सरकार बिकी
काम आता उनका चंदा है ।

फस गई सरकार बेचारी है
चेहरे पर कालिख कारी है ।

सीखा नहीं लेकिन घबराना
जब चोरों से ही यारी है ।

अब दाग़ सभी लगते अच्छे
बेची सब शर्म हमारी है ।

सच को हम नहीं छिपाते हैं
हम अपना धर्म निभाते हैं ।

घोटालों की  ख़बरों को बस
कुछ छोटा कर दिखलाते हैं ।

मुखप्रष्ट की खबर को हम 
कहीं भीतर छपवाते हैं । 

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