अक्तूबर 07, 2012

मिलावट ( व्यंग्य - कविता ) डॉ लोक सेतिया

मिलावट ( व्यंग्य - कविता ) डॉ लोक सेतिया

यूं हुआ कुछ लोग अचानक मर गये
मानो भवसागर से सारे तर गये ।

मौत का कारण मिलावट बन गई
नाम ही से तेल के सब डर गये ।

ये मिलावट की इजाज़त किसने दी
काम रिश्वतखोर कैसा कर गये ।

इसका ज़िम्मेदार आखिर कौन था
वो ये इलज़ाम औरों के सर धर गये ।

क्या हुआ ये कब कहां कैसे हुआ
कुछ दिनों अखबार सारे भर गये ।

नाम ही की थी वो सारी धर-पकड़
रस्म अदा छापों की भी कुछ कर गये ।

शक हुआ उनको विदेशी हाथ का
ये मिलावट उग्रवादी कर गये ।

सी बी आई को लगाओ जांच पर
ये व्यवस्था मंत्री जी कर गये । 

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