अक्तूबर 14, 2012

जाग जाओ बहुत सो लिये ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

जाग जाओ बहुत सो लिये ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

जाग जाओ बहुत सो लिये 
दिन चढ़ा ,आंख तो खोलिये ।

रौशनी कब से है मुन्ताज़िर
खिड़कियां ज़ेहन की खोलिये ।

बेगुनाही में खामोश क्यों
बोलिये और सच बोलिये ।

राह में था अकेला कोई
बढ़ के साथ उसके हम हो लिये ।

हम को कोई न ग़म था मगर
ग़म पे औरों के हम रो लिये ।

खुद को धोखा न देना कभी
आप अपने से सच बोलिये ।

ज़िंदगी का करो सामना
राज़ "तनहा" सभी खोलिये ।
 

 

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