अक्तूबर 07, 2012

प्यार की आरज़ू ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

प्यार की आरज़ू ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

बहार की करते करते आरज़ू
मुरझा गए सब चमन के फूल
खिज़ा के दिन हो सके न कम 
यूं जिए हैं उम्र भर हम ।

हमने तो इंतज़ार किया
उनके वादे पे एतबार किया
हम हैं उनके और वो हमारे हैं
पर इक नदी के दो किनारे हैं ।

सब को हर चीज़ नहीं मिलती
नादानी है चाँद छूने की तमन्ना
हमीं न समझे इतनी सी बात
कि ज़िंदगी है यूं ही चलती ।

प्यार की जब कभी बात होती है
आती हैं याद बातें तुम्हारी
इक खुशबू सी महकती है
चांदनी जब भी रात होती है ।    
 

 

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