अक्तूबर 12, 2012

झूठी सुन्दरता ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

   झूठी सुंदरता ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

खूबसूरत बदन
झील सी गहरी आँखें
मरमरी से होंट
उन्नत उरोज
नागिन से काले बाल
मदमस्त अदाएं
उस पर सोलह श्रृंगार।

सभी को
कर रहे थे दीवाना
लग रहा था धरा पर जैसे
उतर आई है अप्सरा कोई।

तभी सुनाई दिया
उसका कर्कश स्वर
नफरत भरे उसके बोल
और लगने लगी
बेहद बदसूरत वो।

था सब कुछ उसके पास
मगर नहीं था
कुछ भी उसके पास।

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