अक्तूबर 13, 2012

मरने से डर रहे हो ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

मरने से डर रहे हो ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया 

मरने से डर रहे हो
क्यों रोज़ मर रहे हो ।

अपने ही हाथों क्यों तुम
काट अपना सर रहे हो ।

क्यों कैद में किसी की
खुद को ही धर रहे हो ।

किस बहरे शहर से तुम
फ़रियाद कर रहे हो ।

कातिल से ले के खुद ही
विषपान कर रहे हो ।

पत्थर के आगे दिल क्यों
लेकर गुज़र रहे  हो ।