सरकार है बेकार है लाचार है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
सरकार है , बेकार है , लाचार हैसुनती नहीं जनता की हाहाकार है ।
फुर्सत नहीं समझें हमारी बात को
कहने को पर उनका खुला दरबार है ।
रहजन बना बैठा है रहबर आजकल
सब की दवा करता जो खुद बीमार है ।
जो कुछ नहीं देते कभी हैं देश को
अपने लिए सब कुछ उन्हें दरकार है ।
इंसानियत की बात करना छोड़ दो
महंगा बड़ा सत्ता से करना प्यार है ।
हैवानियत को ख़त्म करना आज है
इस बात से क्या आपको इनकार है ।
ईमान बेचा जा रहा कैसे यहां
देखो लगा कैसा यहां बाज़ार है ।
है पास फिर भी दूर रहता है सदा
मुझको मिला ऐसा मेरा दिलदार है ।
अपना नहीं था ,कौन था देखा जिसे
"तनहा" यहां अब कौन किसका यार है ।
1 टिप्पणी:
...अपने लिए...दरकार है👌👍
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