कागज़ के फूल सजाने के ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
कागज़ के फूल सजाने केअंदाज़ न सीखे ज़माने के।
आये वो रस्म निभा के चले
अरमान जिन्हें थे बुलाने के।
बेबात ही हम से हैं वो खफा
उन के हैं ढंग सताने के।
मसरूफ थे या वादा भूले
अच्छे हैं बहाने न आने के।
पत्थर दिल के ये आज सभी
बन बैठे खुदा बुतखाने के।
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