नवंबर 01, 2012

हवाओं को महका दो ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

हवाओं को महका दो ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

हवाओं को महका दो
फज़ाओं को बतला दो ।

बरसती रहें शब भर
घटाओं को समझा दो ।

उठा कर के घूंघट को
ज़रा सा तो सरका दो ।

तुम्हें देखता रहता
ये दर्पण भी हटवा दो ।

खुली छोड़ कर जुल्फें
हमें आज बहका दो ।

हमें तुम कभी "तनहा"
किसी से तो मिलवा दो ।
 

 

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