हवाओं को महका दो ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
हवाओं को महका दोफज़ाओं को बतला दो।
बरसती रहें शब भर
घटाओं को समझा दो।
उठा कर के घूंघट को
ज़रा सा तो सरका दो।
तुम्हें देखता रहता
ये दर्पण भी हटवा दो।
खुली छोड़ कर जुल्फें
हमें आज बहका दो।
हमें तुम कभी "तनहा"
किसी से तो मिलवा दो।
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