झूठा है दर्पण ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
किया सम्मानितसरकार ने
साहित्यकार को
और दे दी गई
इक स्वर्ण जड़ित
कलम भी
सम्मान राशि के साथ ।
रुक जाता
लिखते लिखते
उनका हाथ
जब भी चाहते लिखना वो
जनता के दुःख दर्द की
कोई बात ।
शायद इसलिये
या फिर अनजाने में ही
मुझे भेज दी
उन्होंने वही कलम
शुभकामना के साथ ।
देखा भीतर से
जब कलम को
लगे कांपने मेरे भी हाथ
आया नज़र
स्याही की जगह लहू
डरा गई मुझको ये बात ।
ऐसी ही कलमें
आजकल लिख रहीं हैं
नित नया नया इतिहास ।
गरीबों के खून के छींटे
आ रहे नज़र उनके दामन पर
जो करते तो हैं देशसेवा की बातें
कर रहे हर दिन
जनता का धन बर्बाद ।
आयोजित करते
आडम्बरों के समारोह
प्रतिदिन शान दिखाने
दिल बहलाने को
नहीं कर पाते वो लोग कभी
गरीबों के दुःख दर्द का
कोई एहसास ।
करते जिन की हैं बातें
उन भूखे नंगों का
कर रहे ये कैसा उपहास ।
कौन दिखाये दर्पण उनको
कौन लगाये उन पर कोई आरोप
जब शामिल हैं इनमें
समाज को आईना दिखाने वाले ।
अपनी सूरत
देखें कैसे दर्पण में
और कैसे सब को दिखायें
सरकारी सम्मानों का
क्या है सच
वो हमें कैसे खुद बतायें ।
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