नवंबर 08, 2012

झूठा है दर्पण ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

       झूठा है दर्पण ( कविता ) डॉ लोक सेतिया 

किया सम्मानित
सरकार ने
साहित्यकार को
और दे दी गई
इक स्वर्ण जड़ित
कलम भी
सम्मान राशि के साथ।

रुक जाता
लिखते लिखते
उनका हाथ
जब भी चाहते लिखना वो
जनता के दुःख दर्द की
कोई बात।

शायद इसलिये 
या फिर अनजाने में ही
मुझे भेज दी
उन्होंने वही कलम
शुभकामना के साथ।

देखा भीतर से
जब कलम को
लगे कांपने मेरे भी हाथ
आया नज़र
स्याही की जगह लहू
डरा गई मुझको ये बात।

ऐसी ही कलमें
आजकल लिख रहीं हैं 
नित नया नया इतिहास।

गरीबों के खून के छींटे 
आ रहे नज़र उनके दामन पर
जो करते तो हैं देशसेवा की बातें 
कर रहे हर दिन
जनता का धन बर्बाद।

आयोजित करते
आडम्बरों के समारोह 
प्रतिदिन शान दिखाने
दिल बहलाने को
नहीं कर पाते वो लोग कभी
गरीबों के दुःख दर्द का
कोई एहसास।
 
करते जिन की हैं बातें
उन भूखे नंगों का
कर रहे ये कैसा उपहास।

कौन दिखाये दर्पण उनको
कौन लगाये उन पर कोई आरोप
जब शामिल हैं इनमें
समाज को आईना दिखाने वाले।

अपनी सूरत
देखें कैसे दर्पण में
और कैसे सब को दिखायें
सरकारी सम्मानों का
क्या है सच
वो हमें कैसे खुद बतायें।  

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