विवशता ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
खाली है मेरा भी दामनतुम्हारे आंचल की तरह
कुछ भी नहीं पास मेरे
तुम्हें देने को ।
तुम्हारी तरह है मुझे भी
तलाश एक हमदर्द की
मेरे मन में भी है बाकी
कोई अधूरी प्यास ।
ढूंढती हैं
तुम्हारी नज़रें जो मुझ में
कहने को लरजते हैं
तुम्हारे होंट बार बार
समझता हूँ लेकिन
समझना नहीं चाहता मैं
प्यार भरी नज़रों की
तुम्हारी उस भाषा को ।
छुप सकती नहीं
मन की कोमल भावनाएं
जानते हैं हम दोनों ।
मत आना मेरे करीब तुम
भरे हुए हैं
अनगिनत कांटे
दामन में मेरे
हैं नाज़ुक उंगलियां तुम्हारी
कहीं चुभ न जाए
शूल कोई उनको ।
किसी को देने को कोई फूल
लाल पीला या गुलाबी
नहीं पास मेरे ।
कभी नहीं मिल पाएंगे
हम तोड़ कर
दुनिया के सारे बंधनों को ।
बस आंखों ही आंखों में
करते रहें बात हम
ख़ामोशी से यूं ही करें
हर दिन मुलाक़ात हम ।
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