हमारा अपना ताज ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
मुमताज क्या चाहती थीकिसे पता उसे क्या मिला
ताज बनने से ।
बनवा दिया
एक राजा ने एक महल
संगेमरमर का
अपनी प्रेमिका की याद में
और कह दिया दुनिया ने
मुहब्बत की निशानी उसे ।
तुम नहीं बनवा सकोगे
ताजमहल कोई
मेरी याद में मेरे बाद
मगर जानती हूं मैं ।
तुम चाहते हो बनाना
एक छोटा सा घर
मेरे लिये
जिसमें रह सकें
हम दोनों प्यार से ।
अपना बसेरा बनाने के लिये
हमारी पसंद का कहीं पर
हर वर्ष बचाते हो थोड़े थोड़े पैसे
अपनी सीमित आमदनी में से ।
किसी ताज महल से
कम खूबसूरत नहीं होगा
हमारा प्यारा सा वो घर ।
मुमताज से कम
खुशकिस्मत नहीं हूं मैं
प्यार तुम्हारा कम नहीं है
किसी शाहंशाह से ।
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