नवंबर 14, 2012

हमारा अपना ताज ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

     हमारा अपना ताज ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

मुमताज क्या चाहती थी
किसे पता उसे क्या मिला
ताज बनने से।

बनवा दिया
एक राजा ने एक महल
संगेमरमर का
अपनी प्रेमिका की याद में
और कह दिया दुनिया ने
मुहब्बत की निशानी उसे।

तुम नहीं बनवा सकोगे
ताजमहल कोई 
मेरी याद में मेरे बाद
मगर जानती हूं मैं।

तुम चाहते हो बनाना 
एक छोटा सा घर
मेरे लिये 
जिसमें रह सकें
हम दोनों प्यार से।

अपना बसेरा बनाने के लिये 
हमारी पसंद का कहीं पर
हर वर्ष बचाते हो थोड़े थोड़े पैसे 
अपनी सीमित आमदनी में से।

किसी ताज महल से
कम खूबसूरत नहीं होगा 
हमारा प्यारा सा वो घर।

मुमताज से कम
खुशकिस्मत नहीं हूं मैं 
प्यार तुम्हारा कम नहीं है
किसी शाहंशाह से।

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