दूर रहते हो क्यों तुम हर किसी से ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
दूर रहते हो क्यों तुम हर किसी सेपास आ कर मिलो इक दिन सभी से ।
पास जितना उसे तुम बांट देना
मांगना फिर सभी कुछ ज़िंदगी से ।
कह दिया क्या उसे मरने चला है
देख लो हो गया क्या दिल्लगी से ।
रोकना चाहते हो रोक लो अब
छोड़ शिकवा गिला आवारगी से ।
आज नासेह से पूछा किसी ने
क्या खुदा मिल गया है बंदगी से ।
रुक सका आज तक तूफां कभी है
रोकते हो मुझे क्यों आशिकी से ।
जिनकी खातिर जिये "तनहा" अभी तक
मर गये आज उनकी बेरुखी से ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें