मेरी खबर ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
पहचाना नहीं आज तुमने मुझेतुम्हें फुर्सत नहीं थी मिलने की
करनी थी मुझको जो बातें तुमसे
रहेंगी उम्र भर सब अब अधूरी।
मगर शायद वर्षों बाद पढ़ कर
सुबह का तुम अखबार
या सुन कर किसी से समाचार
आओगे घर मेरे तुम भी एक बार
ढूंढ कर मेरा ठिकाना।
मुमकिन है सोचो तब तुम
कोई तो दे जाता मैं तुम्हें निशानी
काश दोहराते पुरानी हम यादें
सुनते-सुनाते जुबां से अपनी
नई हम कहानी।
मिला है जो
जवाब तुमसे अभी
वही खुद अपने से
मिलेगा तुम्हें कभी
नहीं मिल सकूंगा मैं।
होगी शायद
तुमको भी निराशा
होगी खत्म तुम्हारी भी
मुझसे मिलने की
हर आशा।
ये सब जीते जी
नहीं कर सकूंगा मैं
जो किया है तुमने
वो नहीं दोहराऊंगा मैं।
होगा ऐसा इसलिये
मेरे दोस्त उस दिन
क्योंकि मैं अलविदा
कह चुका हूंगा दुनिया को।
और आये होगे
तुम मेरे घर पर
पढ़कर या सुनकर
मेरे मरने की खबर।
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