खुदा से बात ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
कहते हैं लोगदुनिया में अच्छा-बुरा
जो भी होता है
सब होता है तेरी ही मर्ज़ी से।
अन्याय अत्याचार
धर्म तक का होता है
इस दुनिया में कारोबार।
तेरी मर्ज़ी है इनमें
मैं कर नहीं सकता
कभी भी स्वीकार।
सिर्फ इसलिए कि याद रखें
भूल न जाएं तुझको
देते हो सबको परेशानियां
दुःख दर्द समझते हैं
दुनिया के कुछ लोग।
ऐसा तो करते हैं
कुछ इंसान
कर नहीं सकता
खुद भगवान।
खुदा नहीं हो सकता
अपने बनाए इंसानों से
इतना बेदर्द
निभाता होगा अपना हर फ़र्ज़।
लगता है
कर दिया है बेबस तुझको
अपने ही बनाए इंसानों ने
जैसे माता पिता
हैं यहां बेबस संतानों से।
अपने लिए सभी
करते तुझ से प्रार्थना
मैं विनती कर रहा हूँ
पर तेरे लिए।
बचा लो इश्वर
अपनी ही शान
फिर से बनाओ अपना ये जहान
होगा हम सब पर एहसान।
अब फिर बनाओ दुनिया इक ऐसी
चाहते हो तुम खुद जैसी
अच्छा प्यारा खूबसूरत
बनाओ इक ऐसा फिर से जहां।
जिसमें न हो दुःख दर्द कोई
मिलती हों सबको खुशियां।
अन्याय अत्याचार का
जिसमें न हो निशां
ऐ खुदा अब बनाना
इक ऐसी नई दुनिया।
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