नवंबर 15, 2012

POST : 233 रास्ते ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

     रास्ते ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

मंज़िल की जिन्हें चाह थी
मिल गई
उनको मंज़िल ।

मैं वो रास्ता हूं
गुज़रते रहे जिससे हो कर 
दुनिया के सभी लोग ।

तलाश में अपनी अपनी
मंज़िल की 
मैं रुका हुआ हूं
इंतज़ार में प्यार की ।
 
रुकता नहीं
मेरे साथ कोई भी 
कुचल कर
गुज़र जाते हैं सब
मंज़िल की तरफ आगे ।
 
सबको भाती हैं
मंज़िलें 
बेमतलब लगते हैं रास्ते ।

क्या मिल पाती तुम्हें मंज़िलें 
न होते जो रास्ते ।

रास्तों को पहचान लो 
उनका दर्द
कभी तो जान लो । 
 

 

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