दौलतों से बड़ी मुहब्बत है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
दौलतों से बड़ी मुहब्बत हैअब सभी की हुई ये हालत है ।
बेचते हो ज़मीर तक अपना
देशसेवा नहीं तिजारत है ।
इक तमाशा दिखा लगे कहने
देख लो हो चुकी बगावत है ।
आईना हम किसे दिखा बैठे
यार करने लगा अदावत है ।
आज दावा किया है ज़ालिम ने
उसके दम पर बची शराफत है ।
दोस्त कोई कभी तो मिल जाये
इक ज़रा सी यही तो हसरत है ।
आप गैरों को चाहते लेकिन
आपसे ही हमें तो उल्फत है ।
जब बुलाएं कभी नहीं आते
दूर से देखने की आदत है ।
राह देखा किये वही "तनहा"
बदलना राह उनकी फितरत है ।
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