नवंबर 04, 2012

दौलतों से बड़ी मुहब्बत है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

दौलतों से बड़ी मुहब्बत है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

दौलतों से बड़ी मुहब्बत है
अब सभी की हुई ये हालत है ।

बेचते हो ज़मीर तक अपना
देशसेवा नहीं तिजारत है ।

इक तमाशा दिखा लगे कहने
देख लो हो चुकी बगावत है ।

आईना हम किसे दिखा बैठे
यार करने लगा अदावत है ।

आज दावा किया है ज़ालिम ने
उसके दम पर बची शराफत है ।

दोस्त कोई कभी तो मिल जाये 
इक ज़रा सी यही तो हसरत है ।

आप गैरों को चाहते लेकिन
आपसे ही हमें तो उल्फत है ।

जब बुलाएं कभी नहीं आते
दूर से देखने की आदत है ।

राह देखा किये वही "तनहा"
बदलना राह उनकी फितरत है । 
 

 

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