नवंबर 18, 2012

POST : 237 मेरी जान , मेरे दोस्त ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

    मेरी जान , मेरे दोस्त ( कविता ) डॉ लोक सेतिया 

अक्सर आता है मुझे याद 
पहला दिन कालेज का
झाड़ियों के पीछे
पत्थरों पर बैठे हुए थे
हम दोनों कालेज के लान में ।

रैगिंग से हो कर परेशान 
कितने उदास थे हम 
कितने अकेले - अकेले
पहले ही दिन कुछ ही पल में
हम हो गये थे कितने करीब ।

अठारह बरस है अपनी उम्र 
आज भी लगता है कभी ऐसे
कितनी यादें हैं अपनी
जो भुलाई नहीं जाती 
भूलना चाहते भी नहीं थे
हम कभी ।

पहली बार मुझे
मिला था दोस्त ऐसा 
जो जानता था
पहचानता था
मुझे वास्तव में ।

बीत गये वो दिन कब जाने
छूट गया वो
शहर उसका बाज़ार
गलियां उसकी ।

बरसात में भीगते हुए  
हमारा कुछ तलाश करना
बाज़ार से तुम्हारे लिये 
खो गई सपनों जैसी
प्यारी दुनिया हमारी ।
 
मगर भूले नहीं हम
कभी वो सपने
जो सजाए थे मिलकर कभी 
अचानक तुम चले गए वहां
जहां से आता नहीं लौटकर कोई ।

मुझे नहीं मिला
फिर कोई दोस्त तुम सा 
खाली है मेरे जीवन में
इक जगह
रहते हो अब भी तुम वहां ।

आज भी सोचता हूँ
जाकर ढूंढू 
उन्हीं रास्तों पर तुम्हें जहां
चलते रहे दोनों यूं ही शामों को
अब कहां मिलते हैं
इस दुनिया में तुझसे दोस्त ।

अब क्या है इस शहर में
इस दुनिया में
बिना तेरे मेरी जान मेरे दोस्त ।

                    ( ये कविता मेरे दोस्त डॉ बी डी शर्मा , बीडी के नाम )


 

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