नवंबर 12, 2012

नहीं आफ़ताब चांद तारे नहीं हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

नहीं आफ़ताब चांद तारे नहीं हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

नहीं आफ़ताब चांद तारे नहीं हैं
कहीं ढूंढते मगर सहारे नहीं हैं ।

रुकेगा नहीं कभी सफीना हमारा
हमें मिल सके अभी किनारे नहीं हैं ।

हमारी नहीं उन्हें ज़रूरत ही कोई
हां हम वालदैन के दुलारे नहीं हैं ।

छुपाना नहीं कभी उसे सब बताना
तुम्हारे हुए मगर तुम्हारे नहीं हैं ।

वही आसमां भी है ,वही है ज़मीं भी
चमकते हुए वही सितारे नहीं हैं ।

न हाथों में तीर है ,न शमशीर कोई
लड़ेंगे मगर अभी तो हारे नहीं हैं ।

उन्हें दोस्तों ने मार डाला है "तनहा"
रकीबों की चाल के वो मारे नहीं हैं । 
 

 

कोई टिप्पणी नहीं: