नहीं आफ़ताब चांद तारे नहीं हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
नहीं आफ़ताब चांद तारे नहीं हैंकहीं ढूंढते मगर सहारे नहीं हैं।
रुकेगा नहीं कभी सफीना हमारा
हमें मिल सके अभी किनारे नहीं हैं।
हमारी नहीं उन्हें ज़रूरत ही कोई
हां हम वालदैन के दुलारे नहीं हैं।
छुपाना नहीं कभी उसे सब बताना
तुम्हारे हुए मगर तुम्हारे नहीं हैं।
वही आसमां भी है ,वही है ज़मीं भी
चमकते हुए वही सितारे नहीं हैं।
न हाथों में तीर है ,न शमशीर कोई
लड़ेंगे मगर अभी तो हारे नहीं हैं।
उन्हें दोस्तों ने मार डाला है "तनहा"
रकीबों की चाल के वो मारे नहीं हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें