गांव अपना छोड़ कर हम पराये हो गये ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
गांव अपना छोड़ कर , हम पराये हो गयेलौट कर आए मगर बिन बुलाये हो गये ।
जब सुबह का वक़्त था लोग कितने थे यहां
शाम क्या ढलने लगी , दूर साये हो गये ।
कर रहे तौबा थे अपने गुनाहों की मगर
पाप का पानी चढ़ा फिर नहाये हो गये ।
डायरी में लिख रखे ,पर सभी खामोश थे
आपने आवाज़ दी , गीत गाये हो गये ।
हर तरफ चर्चा सुना बेवफाई का तेरी
ज़िंदगी क्यों लोग तेरे सताये हो गये ।
इश्क वालों से सभी लोग कहने लग गये
देखना गुल क्या तुम्हारे खिलाये हो गये ।
दोस्तों की दुश्मनी का नहीं "तनहा" गिला
बात है इतनी कि सब आज़माये हो गये ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें