नवंबर 29, 2012

गांव अपना छोड़ कर हम पराये हो गये ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

      गांव अपना छोड़ कर हम पराये हो गये ( ग़ज़ल ) 

                          डॉ लोक सेतिया "तनहा"

गांव  अपना छोड़ कर , हम  पराये हो गये 
लौट कर आए मगर बिन  बुलाये हो गये ।

जब सुबह का वक़्त था लोग कितने थे यहां
शाम क्या ढलने लगी ,  दूर साये हो गये ।

कर रहे तौबा थे अपने गुनाहों की मगर 
पाप का पानी चढ़ा फिर नहाये  हो गये ।

डायरी में लिख रखे ,पर सभी खामोश थे
आपने आवाज़ दी , गीत गाये  हो गये ।

हर तरफ चर्चा सुना बेवफाई का तेरी
ज़िंदगी क्यों  लोग तेरे सताये  हो गये ।

इश्क वालों से सभी लोग कहने लग गये 
देखना गुल क्या तुम्हारे खिलाये हो गये ।

दोस्तों की दुश्मनी का नहीं "तनहा" गिला
बात है इतनी कि सब आज़माये  हो गये । 
 

 

कोई टिप्पणी नहीं: