उस पार जाना ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
ले चल मुझे उस पारमेरे माझी
पूछा नहीं कभी भी मैंने
है कहां मेरे सपनों का जहां ।
तलाश करने अपनी दुनिया
जाना है उस पार मुझे
मैं नहीं डरता भंवर से
तूफ़ान से ।
दिया नहीं कभी
किसी ने मेरा साथ
मगर तुम माझी हो मेरे
लगा दो पार नैया मेरी
या डुबो दो भंवर में ।
तोड़ो मत मेरा दिल
ये कह कर
कि उस पार कुछ नहीं है ।
कह दो मेरे माझी
झूठा है ये बहाना
मुझे अब भी
है उस पार जाना ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें