मैं ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
मैं कौन हूंन देखा कभी किसी ने
मुझे क्या करना है
न पूछा ये भी किसी ने
उन्हें सुधारना है मुझको
बस यही कहा हर किसी ने ।
और सुधारते रहे
मां-बाप कभी गुरुजन
नहीं सुधार पाए हों दोस्त या कि दुश्मन ।
चाहा सुधारना पत्नी ने और मेरे बच्चों ने
बड़े जतन किए उन सब अच्छों ने
बांधते रहे रिश्तों के सारे ही बंधन
बनाना चाहते थे मिट्टी को वो चन्दन ।
इस पर होती रही बस तकरार
मानी नहीं दोनों ने अपनी हार
सोच लिया मैंने
जो कहते हैं सभी
गलत हूंगा मैं
गलत हूंगा मैं
वो सब ही होंगें सही
चाहा भी तो कुछ कर न सका मैं
सुधरता रहा
चाहा भी तो कुछ कर न सका मैं
सुधरता रहा
पर सुधर सका न मैं ।
बिगड़ा मैं कितना
कितनी बिगड़ी मेरी तकदीर
कितने जन्म लगेंगें
बदलने को मेरी तस्वीर
जैसा चाहते हैं सब
वैसा तभी तो मैं बन पाऊं ।
पहले जैसा हूं
बिगड़ा मैं कितना
कितनी बिगड़ी मेरी तकदीर
कितने जन्म लगेंगें
बदलने को मेरी तस्वीर
जैसा चाहते हैं सब
वैसा तभी तो मैं बन पाऊं ।
पहले जैसा हूं
खत्म तो हो जाऊं
मुझे खुद मिटा डालो
मुझे खुद मिटा डालो
यही मेरे यार करो
मेरे मरने का वर्ना कुछ इंतज़ार करो ।
मेरे मरने का वर्ना कुछ इंतज़ार करो ।
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