कश्ती वही साहिल वही तूफ़ां वही हैं ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
कश्ती वही साहिल वही तूफां वही हैंखुद जा रहे मझधार में नादां वही हैं ।
हम आपकी खातिर ज़माना छोड़ आये
दिल में हमारे अब तलक अरमां वही हैं ।
कैसे जियें उनके बिना कोई बताओ
सांसे वही धड़कन वही दिल जां वही हैं ।
सैलाब नफरत का बड़ी मुश्किल रुका था
आने लगे फिर से नज़र सामां वही हैं ।
हालात क्यों बदले हुए आते नज़र हैं
जब रह रहे दुनिया में सब इन्सां वही हैं ।
दामन छुड़ा कर दर्द से कुछ चैन पाया
फिर आ गये वापस सभी महमां वही हैं ।
करने लगे जो इश्क आज़ादी से "तनहा"
इस वतन पर होते रहे कुरबां वही हैं ।
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