दर्द को चुन लिया ज़िंदगी के लिये ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
दर्द को चुन लिया ज़िंदगी के लियेऔर क्या चाहिये शायरी के लिये।
उसके आंसू बहे , ज़ख्म जिसको मिले
कौन रोता भला अब किसी के लिये।
जी न पाये मगर लोग जीते रहे
सोचते बस रहे ख़ुदकुशी के लिये।
शहर में आ गये गांव को छोड़ कर
अब नहीं रास्ता वापसी के लिये।
इस ज़माने से मांगी कभी जब ख़ुशी
ग़म हज़ारों दिये इक ख़ुशी के लिये।
तब बताना हमें तुम इबादत है क्या
मिल गया जब खुदा बंदगी के लिये।
आप अपने लिए जो न "तनहा" किया
आज वो कर दिया अजनबी के लिये।
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