उसको न करना परेशान ज़िंदगी ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
उसको न करना परेशान ज़िंदगी
टूटे हुए जिसके अरमान ज़िंदगी ।होने लगा प्यार हमको किसी से जब
करने लगे लोग बदनाम ज़िंदगी ।
ढूंढी ख़ुशी पर मिले दर्द सब वहां
जायें किधर लोग नादान ज़िंदगी ।
रहने को सब साथ रहते रहे मगर
इक दूसरे से हैं अनजान ज़िंदगी ।
होती रही बात ईमान की मगर
आया नज़र पर न ईमान ज़िंदगी ।
सब ज़हर पीने लगे जान बूझ कर
होने लगी देख हैरान ज़िंदगी ।
शिकवा गिला और "तनहा" न कर अभी
बस चार दिन अब है महमान ज़िंदगी ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें