रुक नहीं सकता जिसे बहना है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
रुक नहीं सकता जिसे बहना हैएक दरिया का यही कहना है ।
मान बैठे लोग क्यों कमज़ोरी
लाज औरत का रहा गहना है ।
क्या यही दस्तूर दुनिया का है
पास होना दूर कुछ रहना है ।
बांट कर खुशियां ज़माने भर को
ग़म को अपने आप ही सहना है ।
बिन मुखौटे अब नहीं रह सकते
कल उतारा आज फिर पहना है ।
साथ दोनों रात दिन रहते हैं
क्या गरीबी भूख की बहना है ।
ज़िंदगी "तनहा" बुलाता तुझको
आज इक दीवार को ढहना है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें