हमको मिली सौगात है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
हमको मिली सौगात हैअश्कों की जो बरसात है।
होती कभी थी चांदनी
अब तो अंधेरी रात है।
जब बोलती है खामोशी
होती तभी कुछ बात है।
पीता रहे दिन भर ज़हर
इंसान क्या सुकरात है।
होने लगी बदनाम अब
इंसानियत की जात है।
रोते सभी लगती अगर
तकदीर की इक लात है।
"तनहा" कभी जब खेलता
देता सभी को मात है।
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