बहाने अश्क जब बिसमिल आये ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
बहाने अश्क जब बिसमिल आयेसभी कहने लगे पागल आये ।
हुई इंसाफ की बातें लेकिन
ले के खाली सभी आंचल आये ।
सभी के दर्द को अपना समझो
तुम्हारी आंख में भर जल आये ।
किसी की मौत का पसरा मातम
वहां सब लोग खुद चल चल आये ।
भला होती यहां बारिश कैसे
थे खुद प्यासे जो भी बादल आये ।
कहां सरकार के बहते आंसू
निभाने रस्म बस दो पल आये ।
संभल के पांव को रखना "तनहा"
कहीं सत्ता की जब दलदल आये ।
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