हमको जीने के सब अधिकार दे दो ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
हमको जीने के सब अधिकार दे दोमरने की फिर सज़ा सौ बार दे दो ।
अब तक सारे ज़माने ने रुलाया
तुम हंसने के लिए दिन चार दे दो ।
पल भर जो दूर हमसे रह न पाता
पहले-सा आज इक दिलदार दे दो ।
बुझ जाये प्यास सारी आज अपनी
छलका कर जाम बस इक बार दे दो ।
पर्दों में छिप रहे हो किसलिये तुम
आकर खुद सामने दीदार दे दो ।
दुनिया ने दूर हमको कर दिया था
रहना फिर साथ है इकरार दे दो ।
दिल देने आज "तनहा" आ गया है
ले लो दिल और दिल उपहार दे दो ।
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