तमाशा भी खुद ही तमाशाई भी ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
लोग झूठी कसमें खाते हैं जानते हैं कोई नहीं मरता झूठ के सहारे दुनिया ज़िंदा है सच की राह चलती तो दो घड़ी नहीं टिक सकती ऐसे हालात हैं । वो बड़े संत महात्मा कहलाते हैं शहर में जब भी आते हैं कुछ ऐसी अलख जगाते हैं कोई नया सबक पढ़ाते हैं हम नासमझ क्या जाने ये कौन हैं जहां से आये चले जाते हैं । अदालत वालों से कहने लगे अदालत में झूठ बोलना पाप नहीं है पाप महंगा बिकता है सच नहीं बिकता झूठ बोलने से कारोबार चलता है । यही कमाल है भांप लेते हैं कहां कैसे लोग हैं जो उनको अच्छी लगेगी वही बात समझाते हैं । उस खबर के साथ इक खबर थी बड़ी अदालत की खामोश रहने की शर्त पर किसी को ज़मानत दी थी अब बात का मतलब समझाने लगे कि हमने खामोश रहने को नहीं कहा था सिर्फ़ सच नहीं बोलना है इतना फरमान जारी किया था । लेकिन सामने हैं देख सकते हो जिस ने आपत्तिजनक शब्द बोले थे हमने उसको मोहलत दे दी है हमारे तराज़ू के बाट बदलते हैं पलड़ा बराबर है कमाल नहीं समझते आप के सितारे गर्दिश में आप सितारों की चाल नहीं समझते । जिनकी बात पहले की थी कुछ साल पहले कोई बड़ी शोहरत नहीं थी हम भी उनसे मिले थे इक धर्मशाला में उनका ठिकाना था । हमने उनसे सवाल किया था इतने उपदेश धार्मिक प्रवचन होते हैं फिर समाज सुधरता नहीं खराब होता जाता है । बोले अच्छा बुरा सब नज़र की बात है इधर से कुछ उधर से कुछ नज़र आता है , लोग आते हैं सर झुकाते हैं उपदेश सुनते हैं भूल जाते हैं । मैंने निवेदन किया जब आप कथा सुनाते हैं समझाना अगर आचरण नहीं बदलते तो व्यर्थ समय गंवाते हैं । वो पहली बार सच बोल बैठे हमको वही तो बुलाते हैं पैसे ताकत वाले लोग हैं हम उनसे बचते हैं जो मूर्ख लोग टकराते हैं चूर चूर हो जाते हैं ।
बड़ी उलझन है पहले खुद सभी कुछ विदेश से मंगवाया अचानक लगा घड़बड़ हो गई अब कहते हैं विदेशी मत मंगवाओ मत खरीदो मत बेचो । हमने विदेशी सामान की होली जलाई थी अंग्रेजी हुक़ूमत देश से भगाई थी ज़रा अपने खुद की तलाशी लेना कुछ भी विदेशी रखा हो फैंक देना चाहे कितना कीमती सामान हो । जब भी भूलसुधार करनी हो पहल अपने से करते हैं । हम भारतवासी कब किसी से डरते हैं , पिछले दस सालों में विदेशी माल का आयात पहले से कई गुणा बढ़ा है और निर्यात पहले से घटता गया है । और किसी ने नहीं किया सब आपका दुनिया भर के लोगों से रिश्ता है दोस्ती है प्यार है आपने जो ग़ज़ब ढाया है जनता का जीवन डगमगाया है । चलो गांधी जी का तरीका अपनाते हैं विदेशी सामान को ख़ाक़ में मिलाते हैं । जितना भी विदेशी सामान मूर्तियां अन्य सामान बड़े बड़े महल भवन से हर कदम निशानियां हैं सभी आपकी अजब अजब निशानियां हैं । आपने क्या क्या ढंग अपनाये हैं ऊंचे दाम घटिया चीज़ें बड़े चाव से लाये हैं , अब लौट कर वापस उसी ठिकाने आये हैं लेकिन आपके अपने हैं जो उनसे बचना रिश्ते उनसे कितनी तरह निभाए हैं । नहीं उनका देश से गुज़ारा है उनको मुनाफ़ा आपसे ही नहीं सबसे प्यारा है , उनका कोई नहीं आपके बिना सहारा है । उनकी बात बदलते पता नहीं चलता पलक झपकते ही उनका तौर तरीका बदलने लगता है , उनकी झांकी निकलती है लोग फूलों की बारिश करते हैं । हमसे खरीदो सब बेचते हैं हमने देखा उनकी दुकान में कोई सामान ही नहीं वो कुछ बनाते भी नहीं मंगवाते भी नहीं फिर भी सभी कुछ का कारोबार करते हैं , आजकल वो सजने संवरने की बात कहते हैं दुल्हनों का श्रृंगार करते हैं ।
कोई उनकी कहानी खोज लाया है , उनका सफ़र नया नहीं पुराना है उनका मकसद बनाकर ढाना है , स्वदेशी का राग इक बहाना है । हमने कृत्रिम होशियारी से सवाल पूछा है उन में क्या क्या ख़ास स्वदेशी है जवाब सुनकर सर चकराया है उनका हर पुर्ज़ा किसी विदेशी कंपनी का बनाया है भारत में उनको मिला कर मेक इन इंडिया का ठप्पा लगाया है । असली क्या है नकली क्या है कौन परखता है समझता है उनको कुछ भी नहीं आता है सिर्फ़ उनके पास बही खाता है जिस में साहूकार क़र्ज़ बढ़ा चढ़ा कर लिखता है जो कोई वापस लौटाता है सूद समझ जमा करना भूल जाता है । देश की अर्थ - व्यवस्था चरमराई है लेकिन किसी की बढ़ी कमाई है उन साहूकारों को बधाई है अधिकांश जनता सड़क पर आई है पीछे कुंवा है आगे खाई है । हम बेचेंगे लाज़िम है कि हम सब बेचेंगे ये नई प्रथा आज़माई है उनकी शान है दुनिया भर में जगहंसाई है ये कैसा देश है जिस में जनता खुद तमाशा भी है खुद ही तमाशाई है । अदालत से सियासत तक तमाशा ही तमाशा है धर्म उपदेश क्या है इक बताशा है ।
भावार्थ : - झूठ बोलने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं , मगर झूठ बोलने का सलीका किसी किसी को आता है , हमारे शहर में इक महात्मा ये कला जानते हैं मगर किसी को समझाते बताते नहीं हैं ।

1 टिप्पणी:
तुकांत की वजह से लेख उतना खुल नहीं पाया है जैसे लेख आपके होते हैं। और बेहतर हो सकता था फिर भी नीतियां बदलते रहने की बात दिखाई गई है👍
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