रहो खामोश ये फ़रमान चुप रहना नहीं आसां ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया ' तनहा '
रहो ख़ामोश ये फ़रमान चुप रहना नहीं आसां
न जीने की भी मोहलत है यहां मरना नहीं आसां ।
अजब इक तौर देखा अब अदावत की सियासत है
इनायत कातिलों पर क्यों ये सच कहना नहीं आसां ।
लगी करने यहां सरकार कारोबार सत्ता का
उन्हीं रस्तों गुज़रना है जहां चलना नहीं आसां ।
उसी को चारागर समझो दिए हैं ज़ख़्म सब जिसने
जिसे नासूर कहते हैं उसे भरना नहीं आसां ।
बुझा सारे चरागों को अंधेरा कर दिया इतना
हवाएं कह रही ' तनहा ' शमां जलना नहीं आसां ।
1 टिप्पणी:
Wah बहुत खूब
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