मई 04, 2025

POST : 1960 ऊपरवाला जान कर अनजान है ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

   ऊपरवाला जान कर अनजान है  ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

आखिर मेरा इंतज़ार ख़त्म हुआ मौत का फ़रिश्ता सामने खड़ा था , मुझसे कहने लगा बताओ किस जगह जाना है । मैंने जवाब दिया मुझे दुनिया बनाने वाले से मिलना है , फ़रिश्ता बोला उसकी कोई ज़रूरत नहीं है विधाता ने सभी को अपने अपने विभाग आबंटित कर सब उन्हीं पर छोड़ा हुआ है । मैंने समझ लिया असली परेशानी की जड़ यही है अब तो ऊपरवाले से मिलना और भी ज़रूरी हो गया है , मैंने कहा ऐसी ही व्यवस्था से दुनिया परेशान है सरकार विभाग बनाकर किसी को दायित्व सौंपती है मगर कोई भी अपना काम ठीक से नहीं करता नतीजा भगवान भरोसे रहने वाले जीवन भर निराश होते रहते हैं । अन्याय सहते सहते उम्र बीत जाती है दुनिया में इंसाफ़ नहीं मिला तो ऊपरवाले से उम्मीद रखते हैं लेकिन कोई विनती कोई प्रार्थना कुछ असर नहीं लाती , फिर भी भगवान को छोड़ जाएं तो किस दर पर जाएं । धरती पर जैसे सरकारों को फुर्सत नहीं जनता के दुःख दर्द समस्याओं पर ध्यान देने की शासक प्रशासन सभी का ध्यान केंद्रित रहता है सरकार है यही झूठा विश्वास दिलाने पर । परेशान लोग आखिर मान लेते हैं कि सरकार कहने को है जबकि वास्तव में कोई सरकार कोई कानून कोई व्यवस्था कहीं भी नहीं है । न्यायपालिका से संसद विधानसभा तक सभी खुद अपने ही अस्तित्व को बचाए रखने बनाने की कोशिश करने में समय बर्बाद करते हैं । फ़रिश्ता मज़बूर हो कर मुझे ऊपरवाले के सामने ले आया , भगवान का ध्यान जाने किधर था मेरी तरफ देखा तक नहीं । 
 
मैंने ही प्रणाम करते हुए पूछा भगवान जी आपकी तबीयत कैसी है कोई चिंता आपको परेशान कर रही है । भगवान कहने लगे क्या बताऊं कुछ भी मेरे बस में नहीं रहा है , जब मेरे देवी देवता ही अपना कामकाज ठीक से नहीं करते तो धरती पर सत्ताधारी लोगों और प्रशासनिक लोगों से क्या आशा की जा सकती है । लेकिन समस्या ये भी है कि हमने भी आपके देश की तरह इक संविधान बनाया हुआ है जिस में सभी को अपना कार्य ईमानदारी और सच्ची निष्ठा से निभाना है मगर पद मिलने के उपरांत शपथ कर्तव्य कौन याद रखता है हर कोई अधिकारों का मनचाहा उपयोग करने लगता है । संविधान की उपेक्षा करते हैं सभी हर कोई समझता है कि संविधान उस पर नहीं लागू होता , संविधान बेबस है खुद कुछ नहीं कर सकता संविधान से शक्ति अधिकार पाने वाले मर्यादा और आदर्श को ताक पर रख देते हैं । आखिर मुझे ही समस्या का वास्तविक कारण बताना पड़ा भगवान ने जब कहा कि उसने तो कितना शानदार ढंग बनाया हुआ है हर देवी देवता को मालामाल किया हुआ है उनको चाहने वाले भी चढ़ावा चढ़ाते हैं फिर लोग ख़ाली झोली वापस कैसे लौटते हैं । 

मुझे समझाना पड़ा देश का बजट कितना बड़ा है लेकिन सभी मंत्री संसद विधायक अधिकारी सचिव और विभाग वाले बंदरबांट करते हैं , अंधा बांटे रेवड़ी फिर फिर अपने को दे । अमीर और सत्ता के ख़ास लोग जमकर मौज उड़ाते हैं सभी खज़ाना खुद सरकार और उसके करीबी खा जाते हैं लोग हाथ पसारे खड़े रह जाते हैं । आपके देवी देवता के भी आलीशान भवन बनते जाते हैं , गरीब लोग बेबस बेघरबार हैं ख़ाली पेट भजते हैं प्रभुनाम सतसंग की भीड़ बन धोखा खाते हैं । साधु संत धर्म उपदेशक करोड़ों के मालिक बनकर रंगरलियां मनाते हैं , जैसे राजनेता और समाजसेवा की बातें करने वाले जनता का हक हज़म कर अपना फ़र्ज़ लूट की छूट का अवसर मनाते हैं । सरकार बनाकर भगवान बनाकर लोग पछताते हैं आहें भरते हैं अश्क़ बहाते हैं खाली हाथ आते हैं ख़ाली हाथ दुनिया से लौट आते हैं , अजब दुनिया तुमने बनाई है जिधर जाओ पहाड़ों की बात होती है जनता की किस्मत हरजाई है आगे पीछे दोनों तरफ गहरी खाई है । गरीबी की रेखा की कितनी लंबाई है । 


 The number of children in the poor population is increasing rapidly, five  crore children in India are forced to live in extreme poverty. | गरीब आबादी  में तेजी से बढ़ रही बच्चों
 


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