मई 24, 2025

POST : 1971 विरासत अब समझ में आ रही है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया ' तनहा '

विरासत अब समझ में आ रही है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया ' तनहा ' 

 

सियासत बोझ बनती जा रही है 
विरासत अब समझ में आ रही है । 
 
नज़र तिरछी हुई सत्ता की देखो 
लो सबको याद नानी आ रही है ।  
 
भरोसा अब नहीं कोई भी बाकी 
हक़ीक़त देख कर पछता रही है । 
 
जो शोले राख में दहके हुए हैं 
उसे वो रौशनी बतला रही है । 
 
हुआ क्या हाल ' तनहा ' देश का है
फसल को बाड़ चरती जा रही है । 
 
 

 
 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

फसल को बाड चरती👌👍