मई 27, 2025

POST : 1973 अच्छे लोग कहते हैं ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

      अच्छे लोग कहते हैं ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया  

पिछले कुछ सालों से बहुत लोग किसी को भला बुरा कहने में हद पार कर चुके हैं , किसी को मरने के बाद बुरा साबित करना किसी को अच्छा साबित नहीं कर सकता है । आपकी महानता की बुनियाद किसी की कब्र पर कायम है तो ये आपको कितना बौना साबित करती है । वास्तव में जिनको हर शख़्स में खामियां दिखाई देती हैं कोई भी अच्छाई नहीं नज़र आती उनकी निगाह से सोच या नज़रिया तक दोषपूर्ण है उनको आईना देखने से डर लगता है ।  कभी कभी लगता है अच्छा होना किसी मुसीबत से कम नहीं है , दुनिया अच्छों को अकसर बुरा साबित करती है किसी को अच्छा समझना दुनिया ने सीखा ही नहीं । बुरा कहने के लिए साहस नहीं चाहिए और न ही खुद अच्छा होने का प्रमाण , सिर्फ आपको झूठ को भी सच साबित करने की कला आनी चाहिए जो आपको सोशल मीडिया से खूब सिखलाई जाती है ।
 
दुनिया जहान के ख़राब लोग हैं सभी , जितने भी मेरे करीब रहते हैं , तमाम अच्छे भले लोग हर दिन बस यही बात कहते हैं । पास किसी के उनके सवालों का कोई जवाब नहीं बढ़कर उनसे हुआ कोई नवाब नहीं नहीं ये सच है कोई झूठा ख़्वाब नहीं । अपनी नज़रों में हर कोई महान होता है सभी के भीतर इक मिटठू तोता है , दिल सौ बार वही दोहराता है सभी को समझाना उसी को आता है । कौन उनसे बढ़कर रिश्ते नाते निभाता है पूछना उनसे पास उनके सबका बही खाता है । बस वही शख़्स उनके दिल को भाता है जो उनकी हर बात में हां मिलाता है कौन ऐसा है जो सुर से सुर मिलाता है राग दरबारी किसी किसी को आता है । हमने चुप रहने की कसम खाई है हमारी इसी में भलाई है हम जिस कुर्सी पर बैठे हैं कटवाने को बालों को काटने वाले के पास उस्तरा कैंची है अपना नाई है । हर किसी ने उसके सामने गर्दन झुकाई है जिस किसी की हजामत उसने बनाई है चेहरे पर चमक चंपी करवाते ही आई है । साहब आपकी दाढ़ी खूब जचती है बस थोड़ी सफेदी जो आई है वही इक लट लगती हरजाई है गंजे सर की रौनक क्या बताएं अनुपम खेर आपका शायद भाई है क्या ग़ज़ब की हंसी है उसने आपसे सीखी है या किसी से चुराई है । 

हम मानते हैं सब जानते हैं आप कितने समझदार हैं चतुर सुजान हैं सयाने हैं अंधों का राज है सभी काने हैं । आपकी कम होगी जितनी भी हुई बढ़ाई है ये दुनिया क्या जाने आपने इक कसम उठाई है सामने कोई खड़ा नहीं हो सकता पीछे सभी ख़ास लोग हैं चोर चोर मौसेरा भाई है । हर ज़ुबान पर चर्चा आपका है कोई भी आप सा नहीं देखा आपके पास छाछ है सभी के लिए खुद की खातिर दूध मलाई है । आपने ऐलान किया है कि सिर्फ़ आप समंदर हैं रेगिस्तान की प्यास आपने बुझाई है मृगतृष्णा आपका हर करिश्मा है भूख गरीबी तक को शर्म आती है । धूप आपकी प्यास बुझाती है छांव दरख़्तों की घबराती है आपको ढकती है शान बढ़ाती है । बात कितनी पुरानी है शक़्ल जानी पहचानी है शान से सवारी निकलती है उसने ग़ज़ब की खूबसूरत पोशाक बनवाई है उसको सच बोलने की सज़ा मिलती है कहता है बच्चा कोई नंगा है देख लो सब कितना चंगा है । 
 
समझदारों की बात मत करना समझदारों ने दुनिया को बर्बाद किया है नासमझ लोग कुछ जानते ही नहीं कोई लाख समझाता रहे मानते ही नहीं । मतलब की बात समझदार करते हैं सच नहीं बोलना कोई खफ़ा होगा डरते हैं कभी कह बैठे कुछ तो बात का मतलब और बताते हैं झूठी बात है मैंने कुछ बोला नहीं झट से मुकरते हैं । सब अच्छे लोग कहलाते हैं मरने के बाद ज़िंदा रहकर बुरे कहलाते हैं आपको इक कथा सुनाते हैं किसी की नहीं इक कवि की बात बताते हैं । कभी किसी ने कहा था ........... मरिया जाणिये जिस दिन तेहरवां होय मैंने बीच में ख़ाली छोड़ दिया है आप चाहें तो किसी और का नहीं मेरा नाम भर सकते हैं । मैं ज़िंदा कब हूं अमिताभ बच्चन जी का डायलॉग है ये जीना भी कोई जीना है लल्लू । हास्य कविता का आनंद लीजिए । 
 
 

कवि नहीं मर सकता  ( हास्य-व्यंग्य कविता ) डॉ लोक सेतिया

चला रहे हो कविवर
शब्दों के तुम तीर
आखिर कब समझोगे
श्रोताओं की पीर ।

कविता से अनजान थे लोग
बस कवि से परेशान थे लोग
क्या क्या कहता है जाने
सुन सुन कर हैरान थे लोग
कविता से बच न पाते
कुछ ऐसे नादान थे लोग ।

खुद ही बुला आए उसको
अब जिससे परेशान थे लोग ।

कविताओं से लगता डर
वो भी आखिर इंसान थे लोग 
उनको भाता नहीं था कवि 
पर कवि के दिलोजान थे लोग ।

कवि ने मरने का भी
कई बार इरादा किया
लेकिन हर बार फिर
जीने का वादा किया ।

कवि की हर कविता
फटा हुआ थी ढोल
खोलती थी रोज़ ही
किसी न किसी की पोल ।

कवि ने भाईचारे पर
कविता एक सुनाई 
हो गई जिससे घर घर में
थी लड़ाई । 

बाढ़ में डूबे हुए थे
कितने तब घर
जब लिखी कवि ने
कविता सूखे पर
कविता बरसात से
बरसा ऐसा पानी
आ गई तब याद
हर किसी को नानी ।

धर्म निरपेक्षता समझा कर
लिया कवि ने पंगा
भड़क उठा उस दिन
साम्प्रदायिक दंगा ।

प्रेम रोग पर
कविता क्या सुनाई
कई नवयुवकों ने थी
कन्या कोई भगाई ।

झेल रहे थे सभी
जब सूखे की मार
शीर्षक तब था
कविता का बसंत बहार ।

सुन ख़ुशी के अवसर पर
उसकी कविता धांसू
निकलने लगे श्रोताओं के आंसू ।

इतनी लम्बी कविता
उसने इक दिन सुनाई
मुर्दा भी उठ बोला
बस भी करो भाई ।

श्रोताओं पर कवि ने
सितम बड़े ही ढाए
जिसके बदले में उसने
जूते चप्पल पाए ।

कहीं से इक दिन
लहर ख़ुशी की आई
कवि के मरने की
वो खबर जो पाई  

कवि की मौत का
सब जश्न मना रहे थे 
बड़े दिनों के बाद
सारे मुस्कुरा रहे थे 

उसने फिर से आ
सब को डराया
जिन्दा जब वापस
कवि लौट आया ।

प्यार करते मुझसे
समझ लिया कवि ने
दुखी देखा जब
सबको वहां कवि ने ।

सब ने मिलकर कहा
करो इतना वादा
कविता तब सुनाना
जब हो मरने का इरादा
तेरे मरने की अच्छी खबर थी आई
इसी बात पर थी
ख़ुशी की लहर छाई ।

कवि ने समझाया बेकार हंसे
बेकार ही तुम सब हो रोये
कवि को मरा तभी मानिये
जिस दिन तेरहवां कवि का होय ।  

बहुत हुआ बड़ा कठिन है अब सहना 
चाहते हैं सब करना तो आपकी भलाई 
तुमने आकर हम सबकी है नींद उड़ाई 
नहीं मरने वाला कवि बोला सुनो भाई ।


कवि मरा ये जानकर खुश न होना कोय
कवि मरा तब मानिये जिस दिन तेहरवां होय ।
 
 

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1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

Bdhiya aalekh....Nye logo ko purane logo m khamiya dikhti hn bs...Unke kaam or tyag nhi dikhta