मई 08, 2025

POST : 1961 इंसान बन कर रहना हैवान मत बनना ( चिंतन ) डॉ लोक सेतिया

 इंसान बन कर रहना हैवान मत बनना ( चिंतन ) डॉ लोक सेतिया 

मुश्किल है चुपचाप ज़ालिम का ज़ुल्म सहना , आखिर किसी दिन हैवानियत को ख़त्म कर शराफ़त से सभी को दुनिया में है रहना । लेकिन ये याद रखना बुराई से लड़ते लड़ते भलाई मत छोड़ देना , कुछ भी हो बेशक हैवानियत का रास्ता कभी नहीं अपनाना आदमी तू भी हैवान मत बन जाना । कभी सोचा है कोई भी जब न्यायालय में न्यायधीश बन कर किसी मुजरिम को फांसी की सज़ा का फ़ैसला लिखता है तब जिस पेन से निर्णय लिखता है उसकी निब को तोड़ देता है । कोई कलम कभी अपनी संवेदना से विमुख नहीं होती उसे न्याय करते हुए भी किसी का जीवन समाप्त करते हुए महसूस होता है काश ऐसा कभी नहीं लिखना पड़ता शायद तभी उस से भविष्य में कुछ भी लिखना नहीं चाहता न्यायधीश । निर्दयी लोग मासूमों की जान बेरहमी से लेते हैं और उनका अंत करना पड़ता है मगर इंसानियत मासूम लोगों की मौत पर शोक मनाती है तो निर्दयी लोगों की हैवानियत की सज़ा देते समय उनकी मौत पर भी कोई ख़ुशी कोई उत्सव नहीं मनाती है । कभी सुना होगा कि हमारी सेना दुश्मन देश के सैनिकों की लाशों को भी आदर पूर्वक दफ़्न करती है उनके धर्म की विधि पूर्वक । धार्मिक ग्रंथों में भी अपने दुश्मन की मौत पर कभी जश्न नहीं मनाया जाता ऐसा पढ़ा है और सुना है कथाओं में देखा है टीवी सीरियल फिल्मों में । अगर हम किसी विधाता ईश्वर भगवान की पूजा अर्चना करते हैं तो जिन आदर्शों मर्यादाओं का पालन उन्होंने किया उस से सबक सीखना ज़रूरी है । 
 
मैं आपको पौराणिक कथाओं की बात नहीं कहना चाहता क्योंकि आधुनिक युग में कोई भी उन जैसा नहीं बन सकता जिन्होंने प्राण जाये पर वचन नहीं जाई या फिर दुश्मन की सौ गलतियां क्षमा करने का संयम रखा हो ।लेकिन शायद हमको याद नहीं है कोई लोकनायक जयप्रकाश नारायण हुआ है जिस ने न केवल अपने विरोधी से मानवीय व्यवहार कायम रखा हो उसकी बातों को दरकिनार कर , बल्कि पांच सौ खूंखार डाकुओं से भी आत्मसमर्पण करवाया हो उस समाज को भयमुक्त बनाने को । हिंसा और नफरत को कभी भी ताकत से लड़ाई लड़कर या हिंसा का जवाब हिंसा से दे कर ख़त्म नहीं किया जा सकता है । इक घटना है सिखगुरु गोबिंद सिंह जी को किसी ने बताया भाई कन्हैया दुश्मन सैनिकों को भी पानी पिलाता है , भाई कन्हैया गुरु तेगबहादुर जी के समय से अनुयाई बनकर गुरुओं की बाणी को सुनता समझता था । गुरु गोबिंद सिंह जी ने उसको बुलाया और पूछा मुझे बताया गया है कि तुम घायल दुश्मन सैनिकों को मरहम लगाते हो और जो प्यासे हैं दुश्मन उनको भी पानी पिलाते है जबकि हमारी उनसे जंग ही पानी को लेकर ही है । भाई कन्हैया जी ने कहा कि ये बात सच है लेकिन मैं जब भी उनके चेहरे की तरफ देखता हूं मुझे उन में भी गुरूजी आपकी ही छवि दिखाई देती है परमात्मा जैसी वाहेगुरु जैसी । मुझे अपने लिए लड़ने वाले और उनकी तरफ से लड़ने वाले सभी घायल या प्यासे इक जैसे लगते हैं सभी में भगवान का रूप है । तब गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा था भाई कन्हैया जी ने खालसा पंथ की शिक्षाओं को सही तरह से समझा है ये अनमोल हैं सभी को भाई कन्हैया जी की तरह गुरुओं की शिक्षा को समझना चाहिए ।   



1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

सही बात है... पहले हर हाल में उसूलों को निभाया जाता था