मई 23, 2025

POST : 1968 भरोसा टूट जाता है ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

     भरोसा टूट जाता है   ( व्यंग्य  ) डॉ लोक सेतिया 

 
इक फ़िल्मी दृश्य जब निर्देशक ने कहा तो लिखने वाले कहने लगे ऐसा दिखाकर हम उपहास के पात्र बन जाएंगे भला किसी हस्पताल में किसी रोगी को एक साथ तीन लोगों से लेते सीधे खून चढ़ाते देखा है । लेकिन फ़िल्मवाले जानते हैं भारतीय सिनेमा का दर्शक कभी सोचता समझता सवाल नहीं करता उसे तो यही सबसे सही प्रमाण लगता है बेटों का खून मां का खून ही है , ग्रुप मिलाने की ज़रूरत नहीं होती । लेकिन इक फ़िल्म में नाना पाटेकर दो अलग अलग धर्म वालों का खून निकलवा कर पूछता है बताओ कौन सा हिंदू का कौन सा मुस्लिम का है । हमने खून सफ़ेद होना खून का पानी होना कहावत सुनी है खून पसीना एक करना से खून भरी मांग तक कितनी कहानियां लिखी गई हैं । एक फ़िल्म में नायक नायिका की मांग में होली पर गुलाल भरता है और एक में अपने खून से किसी की मांग भर सुहागिन बना देता है । 
 
सफर फिल्म में राजेश खन्ना का डायलॉग है , नायिका नायक को निराशावादी  गीत , ज़िंदगी का सफ़र है ये कैसा सफ़र कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं , गाते हुए सुनकर कहती है , लगता है जैसे आज संगीत रो रहा है , यहां हवा नहीं आंधियां चल रही हैं । राजेश खन्ना खामोश खड़ा जिधर देख रहा होता है , नायिका सवाल करती है जवाब नहीं दिया ये खाली कैनवास को क्या देख रहे हो । वो कहता है मैं अपनी ज़िंदगी को देख रहा हूं जिस में कोई रंग नहीं है कोई मायने नहीं है मकसद नहीं है , दूर से तो वो कोई जुलूस सा लगता है पास जाओ तो लगता है कि मेरी अर्थी है जिसे अपने ही कांधों पर उठाए मैं चलता जा रहा हूं । तुम नहीं जानती मेरे दिल में कैसी आंधियां चल रही हैं , कितने भूचाल भीतर हैं , दिमाग़ में कैसे तूफ़ान हैं , इक आग़ की नदी है जिस में मैं बह रहा हूं । न जाने किस ज्वालामुखी के गर्भ से इसने जन्म लिया है  मैं जल रहा हूं मैं जल रहा हूं कोई लावा है जो मेरे अंदर बह रहा है । नायिका कहती है खुद अपने आप से सहानुभूति होना इक रोग है अन्यथा हमने सीखा है आशावादी रहकर कठिनाईयों से लड़ना , और वो अपने सफर पर चलने की बात कहते हुए आगे बढ़ती जाती है । 
 
 आधुनिक राजनीति ने सामाजिक वास्तविकता से भले कुछ नहीं सीखा हो फ़िल्मी तौर तरीके अभिनय डायलॉग खूब सीख लिए हैं , आजकल कुछ नेता तो इतने माहिर हैं कि लोग  उनके अभिनय को अभिनय नहीं सच समझने लगे हैं । रंग बदलती दुनिया में कभी किसी ने क्या विधाता ने नहीं सोचा होगा कि आधुनिक युग में खून भी अपना रंग रूप बदलता रहेगा कभी पानी कभी माहौल के अनुसार सिंदूर कहलाएगा ।  भाषणों में लुभावने वादे करना पीछे छूट गया लोग ऐसी बातों का उपहास करते हैं यकीन नहीं करते आजकल मनघडंत मनोरंजक बातें भी कारगर नहीं होती तो असंभव आसमान को ज़मीन पर ज़मीन को आकाश पर जैसे बदलाव की बातें तालियां बजवाती हैं । दुष्यंत कुमार की बात याद आई है , रहनुमाओं की अदाओं पर फ़िदा है दुनिया , इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारो । आजकल राजनेताओं की बातों में गंभीरता कम हंसी मज़ाक़ कॉमेडी जैसी अधिक होती है शायद खुद उनके पास अभाव है सोच समझ कर देश की समाज की समस्याओं का समाधान खोजने का ।  लोग आजकल यही देख कर चिंतित हैं कि किसी भी राजनीतिक दल में विचारधारा में परिपक़्वता दिखाई नहीं देती सभी उलझे हुए हैं आपसी बहस और अनावश्यक वाद विवाद में तब जब देश आशंकाओं से घिरा कोई सही मार्ग ढूंढने को बेचैन है ।

 
जल गया अपना नशेमन तो कोई बात नहीं , देखना ये है की अब आग किधर लगती है । सारी दुनिया में गरीबों का लहू बहता है , हर ज़मीं मुझको मेरे खून से तर लगती है । जाँनिसार अख़्तर जी के शेर हैं । इक कहावत है आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास । कितना कुछ बदलने की बातें की थी सत्ता हासिल करने को बदलाव कैसा खुद ही बदलते बदलते क्या से क्या बन गए हैं ।  शायद सोचते हैं अभी तो तमाम उम्र पड़ी है जनता समाज की भलाई करने को पहले जो खुद अपनी चाहत है ख़ास लोगों को ज़रूरत है उसे पूरा होने में विलंब नहीं होने देना है । अपने आखिर अपने होते हैं साधारण लोग जन्म जन्म तक इंतिज़ार कर लिया करते हैं , ज़िंदगी में नहीं तो मौत के बाद ही सही स्वर्ग मिलने की उम्मीद रहती है । 
 
 

जाँनिसार अख़्तर जी की ग़ज़ल पेश है :-   


फुर्सत - ए - कार फ़क़त  चार घड़ी है यारो , 
ये न सोचो कि अभी उम्र पड़ी है यारो । 

अपने तारीक मकानों से तो बाहर झांको ,
ज़िंदगी शम्अ लिए दर पे खड़ी है यारो । 
 
हमने सदियों इन्हीं ज़र्रों से मुहब्बत की है ,
चाँद- तारों से तो कल आंख लड़ी है यारो । 
 
फ़ासला चंद कदम का है , मना लें चलकर ,
सुबह आयी है मगर दूर खड़ी है यारो ।
 
किसकी दहलीज़ पे ले जाके सजायें इसको , 
बीच रस्ते में कोई लाश पड़ी है यारो । 
 
जब भी चाहेंगे ज़माने को बदल डालेंगे ,
सिर्फ कहने के लिए बात बड़ी है यारो । 
 
उनके बिन जी के दिखा देंगे उन्हें , यूं ही सही ,
बात अपनी है कि ज़िद आन पड़ी है यारो ।   




1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

फिल्मो से होता हुआ राजनीति की बात करता बढ़िया लेख👌