मार्च 28, 2013

POST : 321 मुहब्बत कर के टूटा है सभी का दिल ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

       मुहब्बत कर के टूटा है सभी का दिल ( ग़ज़ल ) 

                           डॉ लोक सेतिया "तनहा"

मुहब्बत कर के टूटा है सभी का दिल
कहां संभला ,संभाले से किसी का दिल ।

भुला बैठा , तुम्हारी बेवफ़ाई जो
हुआ बर्बाद फिर फिर बस उसी का दिल ।

तुम्हें दिल दे दिया हमने , तुम्हारा है
नहीं समझो उसे तुम अजनबी का दिल ।

मनाया लाख इस दिल को नहीं माना
लगा लगने पराया सा कभी का दिल ।

हुए थे पार कितने तीर उस दिल से
मिला इक दिन मुहब्बत की परी का दिल ।

बहाये अश्क दोनों ने बहुत मिलकर 
मिला जब ज़िंदगी से ज़िंदगी का दिल ।

किसी की इक झलक आई नज़र "तनहा"
बड़ा बेचैन रहता है तभी का दिल । 
 

 

कोई टिप्पणी नहीं: