मुहब्बत कर के टूटा है सभी का दिल ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
मुहब्बत कर के टूटा है सभी का दिलकहां संभला ,संभाले से किसी का दिल।
भुला बैठा , तुम्हारी बेवफ़ाई जो
हुआ बर्बाद फिर फिर बस उसी का दिल।
तुम्हें दिल दे दिया हमने , तुम्हारा है
नहीं समझो उसे तुम अजनबी का दिल।
मनाया लाख इस दिल को नहीं माना
लगा लगने पराया सा कभी का दिल।
हुए थे पार कितने तीर उस दिल से
मिला इक दिन मुहब्बत की परी का दिल।
बहाये अश्क दोनों ने बहुत मिलकर
मिला जब ज़िंदगी से ज़िंदगी का दिल।
किसी की इक झलक आई नज़र "तनहा"
बड़ा बेचैन रहता है तभी का दिल।
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