मार्च 14, 2013

उसी मोड़ पर आप हम फिर मिले हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

         उसी मोड़ पर आप हम फिर मिले हैं ( ग़ज़ल ) 

                            डॉ लोक सेतिया "तनहा"

उसी मोड़ पर आप हम फिर मिले हैं
जहां ख़त्म होते सभी के गिले हैं ।

है रस्ता वही और मंज़िल वही है
मुसाफिर नये ,कुछ नये काफ़िले हैं ।

मिले रोज़ कांटे जिन्हें नफरतों से
हुआ प्यार जब फूल कितने खिले हैं ।

नया दौर कहता मुझे प्यार करना
सदा टूटते सब पुराने किले हैं ।

नहीं घास को कुछ हुआ आंधियों में 
जो ऊंचे शजर थे , वो जड़ तक हिले हैं ।

मुहब्बत में मिलती रहेंगी सज़ाएं 
रुके कब भला इश्क के सिलसिले हैं ।

कहा आज उसने कहो कुछ तो "तनहा"
था कहना बहुत कुछ , मगर लब सिले हैं । 
 

 

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