तुम्हारा सभी से बड़ा दोस्ताना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
तुम्हारा सभी से बड़ा दोस्तानाकिसी रोज़ मिलने हमें भी तो आना।
हुई भूल कैसी ,जुदा हो गये हम
थे जब साथ दोनों समां था सुहाना।
यही इश्क होता है , मिलने को उनसे
बिना नाखुदा के नदी पार जाना।
निराली हैं कितनी अदाएं तुम्हारी
हमें देखना , हम से नज़रें चुराना।
कहा था मेरा हाथ हाथों में लेकर
किया आपने क्या ,पड़ा दिल लगाना।
हमें चांद तारों से मतलब नहीं था
उन्हें देखने का था बस इक बहाना।
महीवाल सोहनी मिले आज फिर से
हुआ प्यार "तनहा" कभी क्या पुराना।
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