मार्च 21, 2013

होगा संभव पांचवें युग में ( हास्य व्यंग्य कविता ) डॉ लोक सेतिया

होगा संभव पांचवें युग में ( हास्य व्यंग्य कविता ) डॉ लोक सेतिया

मिल कर सभी देवता गये प्रभु के पास
सोच सोच कर जब हुए देवगण उदास।

कैसे खुश हों उनकी पत्नियां समझ नहीं आता
सफल कभी न हो पाए किए कई प्रयास।

जाकर किया प्रभु से अपना वही सवाल
बतलाओ प्रभु हो जाये ये हमसे कमाल।

सब है देव पत्नियों को मिलता नहीं खुश कोई
पूरी कर पाते नहीं   देव तक उनकी आस।

विनती सुन देवों की प्रभु को समझ न आया
कोई भी हल समस्या का जाता नहीं बताया।

सुनो देवो बात मेरी  सारे दे कर ध्यान
बदल नहीं सकता विधि का कभी विधान।

जो खुश पत्नी को कर सकता होगा कोई महान
सच मानो नहीं कर पाया ये मैं खुद भगवान।

असम्भव कार्य है करना मत कभी भी प्रयास
जो कोई कर दिखाये बन जाऊं मैं उसका दास।

खुद ईश्वर में जो नारी खोज ले अवगुण सभी
कहलाया करती है औरत पत्नी बस तभी।

मैं ईश्वर सब कर सकता कहता है ज़माना
असम्भव कहते किसको ये भी था समझाना।

पत्नी नाम सवाल का नहीं जिसका कोई जवाब
भूल जाओ उसको खुश करने का मत देखो ख्वाब।

पत्नी को खुश करने वाला हुआ न कोई होगा
चार युगों में सम्भव नहीं  पांचवां वो युग होगा। 

कोई टिप्पणी नहीं: