होगा संभव पांचवें युग में ( हास्य व्यंग्य कविता ) डॉ लोक सेतिया
मिल कर सभी देवता गये प्रभु के पाससोच सोच कर जब हुए देवगण उदास ।
कैसे खुश हों उनकी पत्नियां समझ नहीं आता
सफल कभी न हो पाए किए कई प्रयास ।
जाकर किया प्रभु से अपना वही सवाल
बतलाओ प्रभु हो जाये ये हमसे कमाल ।
सब है देव पत्नियों को मिलता नहीं खुश कोई
पूरी कर पाते नहीं देव तक उनकी आस ।
विनती सुन देवों की प्रभु को समझ न आया
कोई भी हल समस्या का जाता नहीं बताया ।
सुनो देवो बात मेरी सारे दे कर ध्यान
बदल नहीं सकता विधि का कभी विधान ।
जो खुश पत्नी को कर सकता होगा कोई महान
सच मानो नहीं कर पाया ये मैं खुद भगवान ।
असम्भव कार्य है करना मत कभी भी प्रयास
जो कोई कर दिखाये बन जाऊं मैं उसका दास ।
खुद ईश्वर में जो नारी खोज ले अवगुण सभी
कहलाया करती है औरत पत्नी बस तभी ।
मैं ईश्वर सब कर सकता कहता है ज़माना
असम्भव कहते किसको ये भी था समझाना ।
पत्नी नाम सवाल का नहीं जिसका कोई जवाब
भूल जाओ उसको खुश करने का मत देखो ख्वाब ।
पत्नी को खुश करने वाला हुआ न कोई होगा
चार युगों में सम्भव नहीं पांचवां वो युग होगा ।
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