मार्च 21, 2013

POST : 317 होगा संभव पांचवें युग में ( हास्य व्यंग्य कविता ) डॉ लोक सेतिया

होगा संभव पांचवें युग में ( हास्य व्यंग्य कविता ) डॉ लोक सेतिया

मिल कर सभी देवता गये प्रभु के पास
सोच सोच कर जब हुए देवगण उदास ।

कैसे खुश हों उनकी पत्नियां समझ नहीं आता
सफल कभी न हो पाए किए कई प्रयास ।

जाकर किया प्रभु से अपना वही सवाल
बतलाओ प्रभु हो जाये ये हमसे कमाल ।

सब है देव पत्नियों को मिलता नहीं खुश कोई
पूरी कर पाते नहीं   देव तक उनकी आस ।

विनती सुन देवों की प्रभु को समझ न आया
कोई भी हल समस्या का जाता नहीं बताया ।

सुनो देवो बात मेरी  सारे दे कर ध्यान
बदल नहीं सकता विधि का कभी विधान ।

जो खुश पत्नी को कर सकता होगा कोई महान
सच मानो नहीं कर पाया ये मैं खुद भगवान ।

असम्भव कार्य है करना मत कभी भी प्रयास
जो कोई कर दिखाये बन जाऊं मैं उसका दास ।

खुद ईश्वर में जो नारी खोज ले अवगुण सभी
कहलाया करती है औरत पत्नी बस तभी ।

मैं ईश्वर सब कर सकता कहता है ज़माना
असम्भव कहते किसको ये भी था समझाना ।

पत्नी नाम सवाल का नहीं जिसका कोई जवाब
भूल जाओ उसको खुश करने का मत देखो ख्वाब ।

पत्नी को खुश करने वाला हुआ न कोई होगा
चार युगों में सम्भव नहीं  पांचवां वो युग होगा । 
 

 

कोई टिप्पणी नहीं: