हमें खुद से शिकायत क्या करें हम ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
हमें खुद से शिकायत क्या करें हमहै चुप रहने की आदत क्या करें हम ।
बड़े मगरूर देखे हुस्न वाले
किसी से फिर मुहब्बत क्या करें हम ।
लिखे हर दिन नहीं भेजे किसी को
जला डाले सभी ख़त क्या करें हम ।
हमारा जुर्म बोला सच हमेशा
मिली ज़िल्लत ही ज़िल्लत क्या करें हम ।
बहुत तनहाईयां लाती है दौलत
ज़माने भर की दौलत क्या करें हम ।
बड़ा है शहर लेकिन लोग छोटे
हमें लगती है आफ़त क्या करें हम ।
ये दिल उनको नहीं देना था "तनहा"
लगी भोली वो सूरत क्या करें हम ।
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