बात हर इक छुपाने लगा मैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
बात हर इक छुपाने लगा मैंकुछ हुआ ,कुछ बताने लगा मैं।
देखकर जल गये लोग कितने
जब कभी मुस्कुराने लगा मैं।
सब पुरानी भुलाकर के बातें
दिल किसी से लगाने लगा मैं।
मयकदे से पिये बिन हूं लौटा
किसलिये डगमगाने लगा मैं।
बात करने लगे दिलजलों की
फिर उन्हें याद आने लगा मैं।
बेवफ़ा खुद मिलाता है नज़रें
और नज़रें झुकाने लगा मैं।
ख़त जलाकर सभी आज "तनहा"
हर निशां तक मिटाने लगा मैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें